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शनिदेव की कथा | Story of Shani Dev

Story of Shani Dev

ज्येष्ठ माह की अमावस्या के दिन हर साल भगवान शनिदेव की जयंती मनाई जाती है। हिन्दू धर्म में भगवान शनिदेव को न्यायवान और कर्मों के अनुसार फल देने वाले देवता की उपाधि प्राप्त है।

शनिदेव के बारे में यह मान्यता है की इन्हें बहुत जल्दी क्रोध आ जाता है और जिस भी राशि पर इनकी दृष्टि पड़ जाती है, उनके जीवन में संकट के बादल घिर जाते है।

शनिदेव के बारे में ऐसी बहुत सी पौराणिक कथाएं प्रचलित है, जिन्हें बहुत ही कम लोग जानते है। आइए जानते है क्या है यह कथा।

शनिदेव अपने पिता सूर्यदेव को क्यों करते है नापसंद

जब शनिदेव ने छाया के गर्भ से जन्म लिया तो उनके काले रंग को देखकर सूर्यदेव ने उन्हे अपनाने से इंकार कर दिया, इतना ही नहीं सूर्यदेव ने अपनी पत्नी छाया पर लांछन लगया और उनका तिरस्कार करते हुए कहा कि यह मेरा पुत्र नहीं हो सकता। माँ द्वारा की गई तपस्या से शनिदेव में शक्तियां आ गई और उसके बाद जैसे ही उन्होंने अपने पिता सूर्यदेव की तरफ देखा तो उनका रंग काला पड़ गया। अपनी इस दशा से परेशान होकर सूर्यदेव ने भगवान शिव की शरण ली। भगवान शिव ने न सिर्फ सूर्यदेव को उनकी गलती का अहसास करवाया बल्कि क्षमा मांगने पर उनका असली रूप भी लौटा दिया। उस दिन के बाद से ही सूर्यदेव और उनके पुत्र एक दूसरे नारज रहते है।

क्यों है शनिदेव की टेढ़ी दृष्टि

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार बताया जाता है, शनिदेव भगवान श्रीकृष्ण के भक्त थे और ज्यादातर उनकी भक्ति में ही लीन रहते थे। ऐसे में जब उनका विवाह चित्ररथ की पुत्री से हुआ तो वे कृष्ण भक्ति में इतने विलीन रहते थे की उनको अपनी पत्नी को समय देने का ख्याल भी नहीं रहता था। जिसके बाद उनकी पत्नी उनसे नारज हो गई और उन्होंने शनिदेव को श्राप दे दिया कि, जिस पर भी उनकी नज़र या दृष्टि पड़ेगी वह नष्ट हो जाएगा। पत्नी को यह श्राप देकर बहुत पश्चाताप हुआ लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी और अब यह श्राप वापस नहीं लिया जा सकता था। यही कारण है कि शनिदेव कि टेढ़ी दृष्टि को इतना अशुभ माना जाता है।

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। DharmGhar इसकी पुष्टि नहीं करता है।)

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