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रंभा तृतीया व्रत कथा | Rambha Tritiya Vrat katha

Rambha Tritiya Vrat katha

ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष के तीसरे दिन रंभा तृतीया का व्रत रखा जाता है। इस दिन देवलोक की अप्सरा, रंभा कि पूजा की जाती है। इस दिन को रंभा तृतीया के जाना जाता है।

पौराणिक मान्यतानुसार रंभा, समुन्द्र मंथन के समय उत्पन्न होने वाले 14 रत्नों में से एक थी। इस दिन विवाहित महिलाएं पूजा करने के साथ ही इसकी व्रत कथा का भी श्रवण करती है। जानते है क्या है रंभा तृतीया व्रत कथा।

रंभा तृतीया व्रत कथा

पूर्वकालीन समय मे एक ब्राह्मण परिवार बहुत ही सुख पूर्वक जीवन यापन कर रहे होते है, वह दोनों पति पत्नी श्री महालक्ष्मी का विधि- विधान से पूजन किया करते थे। दोनों खुशी-खुशी दिन गुजार रहे थे की अचानक एक दिन ब्राह्मण को किसी कारण से नगर से बाहर जाना पड़ा। वह जाते हुए अपनी पत्नी को समझा कर गया की अपने कार्य के लिए उन्हें नगर से बाहर जाना पड़ता है। ब्राह्मण के नगर से बाहर जाने के बाद ब्राह्मणी बहुत दुखी रहने लगीं। अपने पति के बहुत दिनों तक ना लौटने के कारण वह बहुत शोक और निराशा से घिर गई। एक दिन ब्राह्मणी को सोते समय बुरा स्वप्न आता है, इस स्वप्न में वह देखती है उसके पति के साथ कोई दुर्घटना हो गई है। इस स्वप्न से जाग कर वह विलाप करने लग जाती है।

ब्राह्मणी का यह विलाप सुनकर देवी लक्ष्मी एक बूढी महिला का वेष बना कर वहां प्रकट हो जाती है और उससे उनके दुख का कारण पूछती है। वृद्ध स्त्री के यह पूछने पर ब्राह्मणी उन्हें सारी बात बताती हैं।

ब्राह्मणी की बात सुनकर वह वृद्ध स्त्री उसे ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष में आने वाली रंभा तृतीया का व्रत करने को कहती है। फिर वह ब्राह्मणी उस स्त्री के कहने के अनुसार रंभा तृतीया के दिन व्रत और पूजा करती है और व्रत करने के साथ ही उसके प्रभाव से उसका पति पुन: सकुशल घर लौट आता है।
जैसे रंभा तीज के प्रभाव से ब्राह्मणी के सुहाग की रक्षा होती है, उसी तरह सभी के सुहाग की रक्षा हो !

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