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Apara Ekadashi Vrat Katha: अपरा एकादशी व्रत कथा

Apara Ekadashi Vrat Katha

हिन्दू पंचांग के अनुसार एकादशी को सबसे महत्वपूर्ण तिथियों में से एक माना जाता है। हर साल ज्येष्ठ मास में आने वाली कृष्ण एकादशी तिथि को अपरा एकादशी (apara ekadashi) के नाम से जाना जाता है।

जिस प्रकार भगवान कृष्ण के द्वारा अन्य सभी एकादशियों का महत्व बताया गया है, उसी प्रकार उन्होंने अपरा एकादशी व्रत के महातम्य के बारे में धर्मराज युधिष्ठिर को बताया था। अपरा एकादशी की व्रत कथा (apara ekadashi vrat katha) इस प्रकार से है-

अपरा एकादशी की कथा प्रांरभ करते हुए भगवान कृष्ण में कहा- हे राजन! इस एकादशी को ‘अपरा’ व ‘अचला’ दोनों ही नामों से जाना जाता है। पुराणों में इस एकादशी को लेकर यह मान्यता है कि ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की एकादशी अपरा एकादशी है। यह एकादशी अपार धन देने वाली है। जो व्यक्ति इस व्रत को रखते है, वे समाज में प्रसिद्धि प्राप्त करते है।

इस दिन भगवान विष्णु के त्रिविक्रम अवतार की पूजा की जाती है। अपरा एकादशी का यह व्रत ब्रह्म हत्या, भू‍त योनि, दूसरे की निंदा आदि के सब पाप से मुक्त करवाने वाला माना जाता है। इस साथ ही इस व्रत को करने से परस्त्री गमन, झूठी गवाही देना, झूठ बोलना, झूठे शास्त्र पढ़ना या बनाना, झूठा ज्योतिषी बनना तथा झूठा वैद्य बनना आदि सब पाप नष्ट हो जाते है।

ऐसे क्षत्रिय जो युद्ध से भाग जाए वे नरकगामी होते है, परंतु अपरा एकादशी का व्रत करने से वे सभी देवलोक को प्राप्त होते है। जो शिष्य गुरु से शिक्षा ग्रहण करते हैं फिर उनकी निंदा करते हैं वे अवश्य नरक में पड़ते हैं। मगर अपरा एकादशी का व्रत करने से वे भी इस पाप से मुक्त हो जाते है।

जो फल तीनों पुष्कर में कार्तिक पूर्णिमा को स्नान करने से या गंगा तट पर पितरों को पिंडदान करने से प्राप्त होता है, वही अपरा एकादशी का व्रत करने से प्राप्त होता है। मकर के सूर्य में प्रयागराज के स्नान से, शिवरात्रि का व्रत करने से, सिंह राशि के बृहस्पति में गोमती नदी के स्नान से, कुंभ में केदारनाथ के दर्शन या बद्रीनाथ के दर्शन, सूर्यग्रहण में कुरुक्षेत्र के स्नान से, स्वर्णदान करने से अथवा अर्द्ध प्रसूता गौदान से जो फल मिलता है, वही फल अपरा एकादशी के व्रत से मिलता है।

यह व्रत पापरूपी वृक्ष को काटने के लिए कुल्हाड़ी है। पापरूपी ईंधन को जलाने के लिए ‍अग्नि, पापरूपी अंधकार को मिटाने के लिए सूर्य के समान, मृगों को मारने के लिए सिंह के समान है। अत: मनुष्य को पापों से डरते हुए इस व्रत को अवश्य करना चाहिए।

अपरा एकादशी का व्रत तथा भगवान का पूजन करने से मनुष्य सब पापों से छूटकर विष्णु लोक को जाता है।

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